मेरे क़ातिल को पसीना आ गया।

जब मुझे मर कर के जीना आ गया।।


यार की जिंदादिली तब भा गयी

जब मुझे बोला कमीना आ गया।।


मेरे ईमां  की बुलंदी देखिये

ख़्वाब में मेरे मदीना आ गया।।


खाक़ हो शीशा-ओ-सागर की तलब

हाँ मुझे नज़रों से पीना आ गया।।


फिर दिया धोखा पुराने साल ने

फिर दिसम्बर का महीना आ गया।।


क्यों हटेंगे ये नये अंग्रेज अब

हाथ में जब रायसीना आ गया।।


दिल से हम दैरो हरम से क्या हटे

सामने ज़न्नत का ज़ीना आ गया।।


सुरेश साहनी कानपुर

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