बचपन में सम्पन्न बहुत था

जब सोने चांदी से बढ़कर

होते थे कुछ कंकड़ पत्थर

उसके बाद लड़कपन आया....


वह भी ओ एफ सी में आकर

बीता समय प्रशिक्षण लेकर

जितना खोया उतना पाया....


जब तक फूटे यौवन अंकुर

मैं सरकारी नौकर होकर

आयुध निर्माणी में आया.....


अब इतना मिलता है वेतन

घर परिवार साधु का यापन

करने लायक ही हो पाया....


मात पिता जा चुके छोड़कर

बीबी बच्चे छोटा सा घर

यह जीवन भर का सरमाया.....


कैसे कह दूँ बहुत कमाया

जितना खोया उतना पाया

बचपन में सम्पन्न बहुत था।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है