तुम्हारा हल हमारी मुश्किलें हैं।

सताने के लिए हम ही मिले हैं।।


अकेलापन का मतलब रास्ते हैं

हमारा साथ मतलब मंजिलें हैं।।


न ठुकराओ यही खुशियों के पल हैं

नहीं तो उम्र भर शिकवे-गिले हैं।।


बहारें भी तुम्हारी हमकदम हैं

तुम्हें ही देखकर गुलशन खिले हैं।।


हमें क्या राह दिखलाओगे वाइज़

हमारी राह चलते काफिले हैं।।


अभी हम क्या बता दें लक्ष्य अपने

अभी हम दो कदम ही तो चले हैं।।


हमारी दास्ताँ में गैर क्यों हो

तुम्हारे साथ अपने सिलसिले हैं।।


अयाँ न हो मुहब्बत इसकी खातिर

हमारे होठ खुद हमने सिले हैं।।


मुहब्बत की फतह मुमकिन है लेकिन

बहुत मजबूत दुनियावी किले हैं।।

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है