मैंने जब हल नहीं चलाया
क्या किसान की पीड़ा गाता।
ए सी कमरों में बैठा जब
लिखा कृषक को भाग्यविधाता।।
गेहूं क्या है और धान के
पौधों की पहचान नहीं है
किस सीजन में क्या उगता है
मुझको इसका ज्ञान नहीं हैं
मन चाहा तो गेहूँ रोपा
मन करता चावल उगवाता।।
कभी फावड़ा या कुदाल ले
नहीं बहाया है श्रम सीकर
श्रम की थकन,लिए दो रोटी
खाकर सोया नहीं धरा पर
क्या मजूर की पीड़ा लिखता
क्या श्रम की महिमाएँ गाता।।
कभी न उतरा गहरे जल में
कब लहरों से हाथ मिलाया
कब किश्ती ले गया भंवर में
तूफानों से कब टकराया
मछुआरों की पीड़ाओं पर
कैसे झूठी कलम चलाता।।
किन्तु उसे ही मिले ओहदे
सम्मानों से गया नवाज़ा
जिसने झूठी कलम चलाई
घोषित हुआ वही कवि राजा
मैं किसान मछुआ मजूर पर
कैसे झूठे गीत सुनाता।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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