खुद अपने आप से नज़रें चुराकर।

मैं लिखता हूँ  मगर धारा में बहकर।।

कभी कविता कभी किस्से कहानी

नहीं जिनमे कोई प्रतिरोध के स्वर।।


किसी अन्याय पर खामोश रहना

कलम का इस कदर मदहोश रहना

मैं शर्मिंदा हूँ खुद को कवि बताकर

मेरे कवि धर्म से नज़रें चुराकर

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