इक नज़र ने बचा लिया मुझको।
उसके डर ने बचा लिया मुझको।।
दिल की कश्ती डुबा रही थी जब
इक भँवर ने बचा लिया मुझको।।
मन्ज़िलों में भटक गया होता
पर सफ़र ने बचा लिया मुझको।।
जो मकीं थे वो मार ही देते
दरबदर ने बचा लिया मुझको।।
मेरे अपनों को हाल था मालुम
बेख़बर ने बचा लिया मुझको।।
सुरेश साहनी कानपुर
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