ये औरों की तरह नहीं है।
अपने दिल में गिरह नहीं है।।
पत्ते टूटे हैं शाखों से
मौसम ही इक वज़ह नही है।।
रात और दिन हैं एक बराबर
मेहनतकश की सुबह नहीं है।।
क्या लड़ना ऐसी बातों पर
जिनकी कोई सुलह नहीं है।।
तुम बिन मैं रह सकूँ कहींपर
ऐसी कोई जगह नहीं है।।
ये औरों की तरह नहीं है।
अपने दिल में गिरह नहीं है।।
पत्ते टूटे हैं शाखों से
मौसम ही इक वज़ह नही है।।
रात और दिन हैं एक बराबर
मेहनतकश की सुबह नहीं है।।
क्या लड़ना ऐसी बातों पर
जिनकी कोई सुलह नहीं है।।
तुम बिन मैं रह सकूँ कहींपर
ऐसी कोई जगह नहीं है।।
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