खुश तो होगे गिनती करके

मेरी अपने बेगानों में।

नाम मेरा क्यों लाते हो फिर

अपने सारे अफसानों में।।


मालिक थे जिस घर के उसको

तुमने ही महफ़िल में बदला

फिर मेरी गिनती कर डाली

बिना बुलाये मेहमानों में।।

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