चम्पई हो कि सुरमई मौसम।
बिन तुम्हारे है निर्दयी मौसम।।
शाम शरमा के ओढ़ ले आँचल
इस अदा से वो कह गयी मौसम।।
बन सँवर के वो जब भी आते हैं
हो ही जाता है जादुई मौसम।।
रात रोती रही तुम्हारे बिन
सुब्ह पसरा था आँसुई मौसम।।
जाते जाते ठहर गया मौसम
उसकी बातें बना गयी मौसम।।
तुम भी नाज़ुक मिज़ाज़ हो लेकिन
कुछ अधिक है छुई मुई मौसम।।
उनकी तासीर हम कहें कैसे
सर्दियों में रुई रुई मौसम।।
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