अपने लोगों को अपनों से डरते देख रहा हूँ।

मैं भारत के लोकतंत्र को मरते देख रहा हूँ।।

जिस की  अस्मत लुटे आजकल वही सज़ा भी काटे

पर दुष्टों को खुले सांड सा चरते देख रहा हूँ।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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