एहसासे-वस्ल से ही तबीयत सँवर गयी।

गोया बहार ज़ीस्त को छूकर गुज़र गयी।।

एहसासे -गम से कोई तआरुफ़ कहाँ हुआ

वो हुस्ने दिलफ़रेब ये आयी उधर गयी।।

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है