किसको समझाना चाहे है।

हर कोई पाना चाहे हैं ।।


बिन अभ्यास समर्पण श्रम सब

चोटी पर जाना चाहे है।।


फितरत मेरी फकीरों जैसी

आना दो आना चाहे है।। 


सब जाने हैं अंत यही है

कौन यहाँ आना चाहे है।।


भाग रहा पूरब से पश्चिम

हर पंछी दाना चाहे है।।


आज बनी अज़गर यह दुनिया

कर्म नहीं खाना चाहे है।।


मानवता है धर्म साहनी

किससे मनवाना चाहे है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है