आलू प्याज कहाँ महँगे हैं।
किसने बोला हम गूँगे हैं।।
महँगाई है नियति यहाँ की
सियाराम हमरे संगे हैं।।
खड़े रहे तो युवा तुर्क थे
फिसल गए तो हर गंगे हैं।।
लाठीतन्त्र उन्हें भाता है
सम्विधान रखते ठेंगे हैं।।
एक दृष्टि रखते हैं सब पर
वे चिन्तन से ही भेंगे हैं।।
उनका नँगापन मत पूछो
हम गरीब बस अधनंगे हैं।।
औरों के क्या दोष बताएं
हम चंगे तो सब चंगे हैं।।
सुरेश साहनी कानपुर
Comments
Post a Comment