तुम्हारे साथ के मंज़र सुहाने।

लगे हैं आज फिर से याद आने।।

वो फिल्मी गीत आशा और रफ़ी के

लगे थे साथ तुम जब गुनगुनाने।।

तुम्हारे साथ छुप कर चौक जाना

वही गुप्ता की कड़वी चाट खाने।।

तुम्हारे फेर में  वो  लेट  होकर

बनाना  क्लास में    झूठे बहाने ।।

न जाने किसलिये चुपचाप सुनना

तुम्हारे वास्ते   अपनों के  ताने ।।

मिले तुम अज़नबी जैसे, मिले तो

तुम्हें हम किसलिये अपना न माने।।

ख़ुदारा लौट आते काश फिर से

लड़कपन और कॉलेज के ज़माने।।

सुरेश साहनी,कानपुर

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