तुम्हारा प्यार मैं पहला रहा हूँ।

कि खुद को इस तरह बहला रहा हूँ।।


सुनहरी धूप की चादर लपेटे

सुहाने सर्द दिन को गोद लेकर

तुम्हारी याद को सहला रहा हूँ

मैं खुद को इस तरह बहला रहा हूँ।।


तुम्हारी याद कितनी गुनगुनी है

तुम्हारे रेशमी बालों के जैसी

ख्यालों में किसे फुसला रहा हूँ

कि खुद को इस तरह बहला रहा हूँ।।


हमारी ज़ीस्त करवट ले रही है

पता है शाम ढलते चल पड़ेगी

अभी इस बात को झुठला रहा हूँ

कि खुद को इस तरह बहला रहा हूँ।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है