किस पत्थरदिल ने मेरी तक़दीर लिखी।
दिल मुझको उसके हिस्से में हीर लिखी।।
खुशियां सारी दे डाली अगियारों को
मेरे हिस्से में ग़म की जागीर लिखी।।
देना था तो देता सिफत मसीहाई
खाली पीली फितरत मेरी कबीर लिखी।।
मैं आवारा बनजारा ही अच्छा था
क्यों पैरों में रिश्तों की जंज़ीर लिखी।।
कैसे सोता मस्ती की चादर ताने
जब हो दिल मे दुनिया भर की पीर लिखी।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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