टूटा नहीं हूँ दिल से शिकस्ता नहीं हूं मैं।।

हाज़िर हूँ अपने दौर से गुज़रा नहीं हूं मैं।।


कुछ उलझनें हैं फ़िक्र हैं दुनिया के रंज हैं

इक तुम चले गए तो क्या तन्हा नहीं हूं मैं।।


 मेरे मिज़ाज़ में कभी तल्ख़ी नहीं रही

पर ये न सोच लेना कि रूठा नहीं हूं मैं।।


साक़ी तेरी नज़र में अगर फेर है तो फिर

आशिक़ हूँ सिर्फ़ जाम का प्यासा नहीं हूं मैं।।


पत्थर है तू तो क्या करूँ अपने वजूद का

मत सोच टूट जाऊंगा शीशा नहीं हूं मैं।।


माहिर हूँ अपने फ़न पे मेरा अख्तियार है

ये और बात है अभी चमका नहीं हूं मैं।।


जैसा कि दिख रहा हूँ मैं वैसा तो हूँ मगर

जैसा तेरा ख़याल है वैसा नहीं हूं मैं।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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