जब भी किश्ती लगी किनारे।

तब लहरों ने पाँव पखारे।।

खड़े भँवर थे राहें रोके

तूफानों ने दिए सहारे।।

हमने भी अंगारे लिख कर

झूठे सपने ख़ाक कर दिए

आख़िर सपनीली आंखों के

कोई कैसे कर्ज़ उतारे।।

सुरेश साहनी,कानपुर

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