जाने वो प्यार बांटने वाले कहाँ गये।

थे अपने आप में जो निराले कहाँ गये।।


जब बिक रहे हैं हर तरफ अखबार झूठ के

हक़ बात कहने वाले रिसाले कहाँ गये।।


कहने को रोशनी के हैं सामान हर तरफ

ना जाने इस तरफ के उजाले  कहाँ गये।।


लुटने लगी है द्रोपदी फिर लोकतंत्र की

सुन ले पुकार बाँसुरी वाले कहाँ गये।।


दहकां तो देते आये हैं इस मुल्क को अनाज

फिर  उनकी थालियों से निवाले कहाँ गये।।


चैनल चुनाव के समय करवा रहे थे युद्ध

अब वो बिगुल वो दमदमी नाले कहाँ गये।।


वो अहले हुस्न और मेरे साहनी का दिल

कैसे पता चले कि उठा ले कहाँ गये।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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