तुमको लगा शिकारी हारा।
जग को लगा जुआरी हारा।
काश तुम्हारे मुख से सुनता
मेरा प्रेम पुजारी हारा ।।
क्षण भंगुर जीवन मे मैंने
युग युग प्रेम प्रतीक्षा की है,
तुमने अपराधी ठहराकर
मेरी प्रेम परीक्षा ली है,
मर्यादाओं की रक्षा में
तेरा प्रेम भिखारी हारा।।
किसी कर्ण की व्यथा भला कब
कोई द्रौपदी सुन पाती है,
मन में यदि कुछ कलुष भरें हैं
सच्ची प्रीति कहाँ भाती है,
खाली हाथ द्वार से लौटा
राधा तेरा मुरारी हारा।।
मुझको ये मालूम नहीं था
किस्सों में उल्फ़त होती है
दिल की दौलत से भी बढ़कर
दुनियावी दौलत होती है
दुनियादारी के मसलों में
मैं था निपट अनाड़ी हारा।।
सुरेश साहनी,कानपुर
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