जितने ग़म थे सब अपने थे।

ग़ैर इक हम थे सब अपने थे।।

एक अकेले हम थे जिससे

सब बरहम थे सब अपने थे।।

वैसे तो  दुनिया में  जितने 

जड़ जंगम थे सब अपने थे।।

मुझसे  बैर  निभाने वाले

सिर्फ सनम थे सब अपने थे।।

आये  ग़ैर  मेरी मैय्यत  में

जो भी कम थे सब अपने थे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है