तुमने ख़त में कितनी बातें लिख दी हैं ।

आँसू लिक्खे हैं बरसातें लिख दी हैं ।।


और विरह की सुबह नहीं होनी है क्या

तुमने गम की काली रातें  लिख दी हैं ।।


तुमको वैसे भी एक अवसर देना था

शह तो देते सीधे मातें लिख दी हैं ।।


हम अब भी हैं इश्क़ के पहले दर्जे में

तुमने फिर भी चार जमातें लिख दी हैं।।


वो ज़ख्मों पर मरहम बनने आये थे

जाने क्यों घातों पर घातें लिख दी हैं।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

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