मुझको मेरी जात पता है।
मैं क्या हूँ यह बात पता है।।
नाहक कितना पाँव पसारे
चादर की औकात पता है।।
मेरा भी घर है मिट्टी का
मुझको भी बरसात पता है।।
इंसानों से कैसी यारी
उनको तो जिन्नात पता है।।
वो गूगल के भाई ठहरे
सारी क़ायेनात पता है।।
सुरेश साहनी,अदीब, कानपुर
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