डर लगता है सिर्फ इस लिए

डर के आगे जीत  छुपी है।

डर लगता है सिर्फ इसलिए

हाँ यह जालिम  कायर भी है।।

डर लगता है इसे कलम से

इसे कलम से डर लगता है।

डर लगता है इसे अमन के

हर परचम से डर लगता है।।

डर है इसको खुद कहता है

इसका मज़हब खतरे में है।

ये डरता है समझ रहा है

इसका मनसब खतरे में है।।

इसको डर है इसीलिए यह

आवाजों को दबा रहा है।

बेशक़ यह डर कर भागेगा

आज हमें जो डरा रहा है।।


सुरेश साहनी , कानपुर

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