शाम  ढलनी है रात होनी है।

और क्या खास बात होनी है।।

क्या डरेगा कोई ख़ुदा से भी

ख़त्म गर क़ायनात होनी है।।

हर बशर जो ज़हाँ में आया है

उस बशर की वफ़ात होनी है।।

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