कब जागे हम सोये कब।

हमने ख़्वाब संजोये कब।।

हमने काँटे बोये कब।

तुमने फूल पिरोये कब।।

हमको कुछ भी याद नहीं

होश में कब थे खोये कब।।

बोझ न रहता क्यों दिल पर

हम भी खुल कर रोये कब।।

सच कहना बेमतलब के

तुमने रिश्ते ढोये कब।।


सुरेशसाहनी

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