इक ज़रा सा कभी उचक लेगा।
क्या इसी तरह तू फलक लेगा।।
तुझमें फन है तो रंग लाएगा
कोई सूरज को कैसे ढक लेगा।।
वक्त के साथ चल ज़रूरी है
मुंतज़िर है तेरा उफ़क लेगा ?
तेरे अपने भी छोड़ जायेंगे
तेरी मंज़िल कोई झटक लेगा।।
क्या बचेगा तू डर के जीने से
मौत का देवता लपक लेगा।।
Suresh sahani, kanpur
Comments
Post a Comment