फूलों की कांटों से यारी जान गया।

शायद वो मेरी दुश्वारी जान गया।।


क्या मैं इश्क़ मुहब्बत वाला दिखता हूँ

वो कैसे दिल की बीमारी जान गया।।


जाल में फंस सकता हूँ मैं आसानी से

जंगल का हर एक शिकारी जान गया।।


दिल का दर्द कहा था इक चारागर से

और शहर मेरी लाचारी जान गया।।


बेशक़ वो मेरी फ़िक़्रों से वाकिफ है

क्या मैं भी उसकी ऐयारी जान गया।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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