रात सँवारी दिवस सजाये सुबहो-शाम दिया है।

मेरे प्रिय ने मुझको अपना आठो याम दिया है।।


अपना घर आंगन छोड़ा है मेरे घर की खातिर 

मुश्किल तो है धरा छोड़ ना इक अम्बर की खातिर

मन के हारे तन को उसने सुख अभिराम दिया है।।

मेरे प्रिय ने मुझको अपना आठो याम दिया है।।


मिली विजय श्री नेह भाव से हार गले मे पाकर

घर मन्दिर कर डाला उसने मन मन्दिर में आकर

एक पतित को जैसे प्रभु ने अपना धाम दिया है।।

मेरे प्रिय ने मुझको अपना आठो याम दिया है।।


मुझ जैसे नीरस को उसने सबरस दे डाला है

मैं इस योग्य नहीं था मुझको सरवस दे डाला है

मानो देवी ने कामी को फल निष्काम दिया है।।

मेरे प्रिय ने मुझको अपना आठो याम दिया है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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