मेरी कमियों का मेरी रुसवाईयों का ज़िक्र कर।

कब कहा मैंने मेरी अच्छाईयों का ज़िक्र कर।।


रोशनी के ज़िक्र से तुझको घुटन होती है तो

तीरगी का ज़िक्र कर परछाइयों का ज़िक्र कर।।


धूल धुन्ध धुंवा शराबो-शोर से बाहर निकल

गांव की आबोहवा पुरवाईयों का ज़िक्र कर।।


प्यार में मत ज़िक्र कर तू पब या डिस्कोथेक के

पनघटों को याद कर अमराइयों का ज़िक्र कर।।


आज भी नज़रें बिछी हैं जो कि तेरी राह में

ज़िक्र उन आंखों का उन बीनाईयों का ज़िक्र कर।।


पहले हिरसोहवस के गिरदाब से बाहर निकल

शौक़ से तब हुस्न की आराईयों  का ज़िक्र कर।।


ज़िक्र करना है तो अपनी उल्फतों का कर अदीब

क्या ज़रूरी है कि उन हरजाइयों का ज़िक्र कर।।


सुरेश साहनी अदीब

कानपुर

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