बाबू का रुजगार छुट गया
क्या विद्यालय पढ़ने जायें।
सोच रहे हैं इस सांसत में
हम भी कहीं कमाने जायें।।
कोरोना में काम नहीं था
विद्यालय भी कम खुल पाए
फीस कहाँ से दे पाते हम
सो स्कूल नहीं जा पाए
सोचा है कुछ काम मिले तो
हम भी घर मे हाथ बँटाएँ ।।
मत पूछो यह कोरोना ने
किस किस घर ना करी तबाही
और आपदा में अवसर ले
सरकारों ने करी उगाही
विद्यालय भी सोच रहे हैं
कैसे हम कुछ और कमायें!!
किश्तों पर टीवी आया था
पिछली किश्त नहीं जा पाई
जैसे तैसे इधर उधर से
बाबूजी की चली दवाई
क्लास ऑनलाइन की ख़ातिर
कैसे मोबाइल हम लायें।।
अम्मा इस बीमारी में भी
कर आती है चौका बासन
चार घरों से जैसे तैसे
चल जाता है घर का राशन
अब कोई उम्मीद नहीं है
आगे हम शायद पढ़ पायें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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