उसने हमको ख़त लिक्खा था।

बेशक़ पता गलत लिक्खा था।।

डूब गई साहिल पर आकर

किश्ती पर किस्मत लिक्खा था।।

गुल जैसी सीरत तो ना थी

नाम मगर निकहत लिक्खा था।।

क्या बतलायें कैसे उजड़े

किस्मत में हिज़रत लिक्खा था।।

इतनी नफरत है उस दिल में

मुख पर तो चाहत लिक्खा था।।

सुरेशसाहनी

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