कहने को रब करता है।

पर इंसां सब करता है।।

खुद पत्थरदिल  है लेकिन

पत्थर को रब करता है।।

नासेह खूब सलीके से

बातें बेढब करता है।।

आवारा दिन का सूरज

किसके घर शब करता है।।

वो बेमतलब की बातें

क्या बेमतलब करता है।।

काम अठारह घण्टे तक

फिर तौबा कब करता है।।

सुरेश साहनी,कानपुर

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