दल आते हैं जाते हैं

सत्तायें बनती हैं, गिरती हैं

सत्ता के बदलते ही बढ़ जाती हैं उम्मीदें

बढ़ जाती है आंखों की चमक

कि घटेगी अराजकता, बेरोजगारी, महंगाई,ज़रूरी जिंसों के दाम,तमाम सारी बंदिशें और ढेर सारे टैक्सेस वगैरह वगैरह

और यह आशा भी 

कि अब अपने लोगों का शासन है

अब फलनवे ऐंठ के नहीं चलेंगे

लेकिन जैसे जैसे दिन बीतते हैं

उन्हें लगने लगता है

ऐ स्साला ! हम तो ठगा गए

और फिर यह सोच कर सब्र करते हैं

चलो गोदी के लईका के दू लात भी अखरता नहीं है

और धीरे धीरे उनकी जाति ,उनका धरम, उनके राज पर खतरा बढ़ता जाता है

खतरा जो उनके नेता जी बताते हैं

और फिर बढ़ती जाती है खाई, आपस की दूरी, नागरिकता की परतें ,डर, आश्वासन,नफ़रतें 

घटती जाती है सहूलियतें, 

जेब की गर्मी,आपस का लगाव, सद्भाव ,भाईचारा

और मरती जाती हैं , हसरतें ,उम्मीदें , कला संस्कृति 

और एक देश की नागरिकता का सुखद एहसास।

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