ज़ीस्त किसके वास्ते बेकल रही है कुछ तो कह।

 ख़ामुशी हद से ज़ियादा खल रही है कुछ तो कह।।

ज़िन्दगी को हम किधर ले जा रहे हैं क्या कहें

ज़िन्दगी हमको कहाँ ले चल रही है कुछ तो कह।।

आदतन एक खण्डहर होने को आमादा है तन

उम्र भी अपनी मुसलसल ढल रही है कुछ तो कह।।

और कितनी देर करवाएगी अपना इन्तेज़ार

मोम के जैसे जवानी गल रही है कुछ तो कह।।

तेरी चाहत की वजह से नींद भी जाती रही 

कितने ख़्वाबों का मेरे मक़तल रही है कुछ तो कह।।

सुरेशसाहनी

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