कर गया अपना पराया फिर कोई।

काम आता पर न आया फिर कोई।।


वज़्म में है इक बला की रोशनी

बिजलियों ने घर जलाया फिर कोई।।


अपने दिल का टूटना फिर तय हुआ

प्यार से दिल मे समाया फिर कोई।।


इश्क़ को निस्बत है पहले यार से

हुस्न ने अपना बनाया फिर कोई।।


हॅंस रहे हैं लोग कुछ मुंह फेर कर

ज़ख़्म शायद है नुमाया फिर कोई।।


हर तरफ खामोशियों का शोर है

अश्क़ का सैलाब आया फिर कोई।।


फिर वफ़ा के नाम पर मातम मना

इश्क़ पर ईमान लाया फिर कोई।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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