जो आरोप लगाये तुमने
मैने उसे नकारा कब है
बस इतना बतलाती जाओ
तुमने मुझे पुकारा कब है
कुछ क्षण स्नेह सुधा देकर के
मेरे प्राण ऊबारे कब हैं
अपनी अलकावलि में उलझे
मेरे केश सँवारे कब हैं
प्रणयाकुल नैनो से तुमने
मेरी ओर निहारा कब है
मुझे लगा मैं पूर्ण काम हूँ
तन मन धन सब तुमको देकर
तुम्हें लगा हो किंचित कोई
दे सकता है मुझसे बेहतर
इस दुविधा में सहज प्राप्त फल
मैं था यह स्वीकारा कब है।।
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