खुश रहा वो कम से कम नाराज हरदम ही रहा।
वो जो दिखता था कबूतर बाज़ ही हरदम रहा।।
उसके मरहम ज़ख़्म को नासूर ही करते रहे
वो मसीहा कोढ़ में ज्यूँ खाज ही हरदम रहा।।
और उसकी सांत्वनाएँ डर का ही पर्याय थीं
हादसों में हाथ उसका राज ही हरदम रहा।।
खुश रहा वो कम से कम नाराज हरदम ही रहा।
वो जो दिखता था कबूतर बाज़ ही हरदम रहा।।
उसके मरहम ज़ख़्म को नासूर ही करते रहे
वो मसीहा कोढ़ में ज्यूँ खाज ही हरदम रहा।।
और उसकी सांत्वनाएँ डर का ही पर्याय थीं
हादसों में हाथ उसका राज ही हरदम रहा।।
Comments
Post a Comment