गैरों से शिकायत क्या करते।

अपनों से अदावत क्या करते।।

दुनिया भी अपनी रौ में रही

दुनिया से मुहब्बत क्या करते।।

तुम से तो कोई उम्मीद न थी

हम अपनी हिमायत क्या करते।।

इकतरफ़ा वफ़ा के मानी क्या

हम दावा-ए-उल्फ़त क्या करते।।

दिल तोड़ दिया इससे ज्यादा

तुम और अज़ीयत क्या करते।।

रब की मर्जी से आये गये

अब जश्ने विलादत क्या करते।।

जब तू ही मेरा हासिल न रहा

फिर कोई हसरत क्या करते।।

सुरेशसाहनी


अदावत-शत्रुता  हिमायत-पक्ष लेना

दावा-ए-उल्फ़त --प्यार का दावा

अज़ीयत- परेशानी,यातना

जश्ने-विलादत--जन्मोत्सव

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