व्यथायें मन की पीड़ायें हृदय की क्या बताते।
अगर अनुभूति होती तुम स्वयं ना लौट आते।।
ये माना रात है कल फिर सुबह से शाम होती
घरौंदा साथ बनता फिर बिगड़ता फिर बनाते ।।
तुम संग इस जनम का एक हिस्सा जी न पाये
कहाँ तय था कि नाता सात जन्मों तक निभाते।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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