शासन में आसीन हैं अमीचन्द जयचंद।

एक निरंकुश है अगर दूजा है मतिमन्द।।

दूजा है मतिमन्द साथ सेठन का दल्ला।

खाली करी दुकान लुटा डाला सब गल्ला।।

कह सुरेश कविराय नित्य देता है भाषन।

बेच दिया सब देश बता कर जीरो शासन।।


फिर किसान भी अडिग हैं शासन भी मुंहजोर।

प्रजातंत्र भी हो रहा दिन पर दिन कमजोर।।

दिन पर दिन कमजोर हो रही अर्थव्यवस्था।

दिन प्रतिदिन मजबूत हो रही धन की सत्ता।।

कह सुरेश कविराय पकड़ कर बैठे है सिर।

क्या अच्छे दिन कभी लौट कर आएंगे फिर।।


जन गण मन क्यों है दुखी क्यों इतनी गम्भीर।

विषम परिस्थिति देश की कुछ तो रक्खे धीर।

कुछ तो रक्खे धीर भले दिन भी आएंगे।

काग जायेंगे  भाग हँस मोती खाएंगे।।

कह सुरेश कविराय मिले जो लीजै राशन।

संविधान सम्मत मिलकर गायें जन गण मन।।


सुरेश साहनी, कानपुर

#जयकिसान

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