वो बन्दों को रब लिखता है।
कुछ भी कहो गज़ब लिखता है।।
करता है बेढब सी बातें
ग़ज़लें भी बेढब लिखता है।।
सब कुछ लिख देता है लेकिन
कैसे इतना सब लिखता है।।
उसके दुश्मन बढ़ जाते हैं
वो दिल से जब जब लिखता है।।
शायर है या कोई मदारी
हर्फ़ नहीं करतब लिखता है।।
कितना तन्हा होता है जब
वो सच को मजहब लिखता है।।
अपने कद पर शक है उसको
इस ख़ातिर मनसब लिखता है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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