आप का अपना घर है चले आइए।

मुन्तज़िर हर नज़र है चले आईये।।

मेरी पलकों से हैं ये बुहारी हुई

साफ सुथरी डगर है चले आईये।।

आपके बिन जियें और मुमकिन नहीं

ज़िन्दगी आज भर है चले आईये।।

साथ ताउम्र चलना है जिस पर हमें

ये वही रहगुज़र है चले आईये।।

आज मिलिये अभी कल गया सो गया

कल की किस को ख़बर है चले आईये।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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