किसे है फ़िक्र नँगे हो गए हैं।

वो बिक कर और महंगे हो गए हैं।।

वो दुनिया में मुहब्बत बेचते हैं

इसी से कितने दंगे हो गए हैं।।

हमारे जख़्म कैसे हैं न पूछो

के हम दिखने में चंगे हो गए हैं।।

ये पापी पेट क्या क्या ना करा दे

न सोचो हम अहंगे हो गए हैं।।

दुआओं में तुम्हे माँगा था इतना

फितरतन भीखमंगे हो गए हैं।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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