रुक्नो-अरकान हो गए हो क्या।

वज़्म की शान हो गए हो क्या।।

अपने दिल से हमें निकाल दिया

फिर मुसलमान हो गए हो क्या।।

एक लाठी से सबको हाँकोगे

बढ़ के भगवान  हो गए क्या।।

आदमियत से इस क़दर नफरत

इब्ने- शैतान हो गये हो क्या।।

यूँ तकल्लुफ़ की इन्तेहा करना

घर मे मेहमान हो गए हो क्या।।

हमको तिशना ही मार डालोगे

माहे रमज़ान हो गए हो क्या।।

जाओ जाने की धमकियां मत दो

तुम मेरी जान हो गए हो क्या।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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