आज है रसहीन जीवन
छंद नीरस हो चले हैं
क्या कोई कविता कहे जब
भाव बेबस हो चले हैं।।आज है रस....
अर्थ शब्दों में नहीं है
शब्द भावों में नहीं हैं
रिक्तता अभिव्यक्ति में है
रस गिराओं में नहीं हैं
खोखले संवाद दावा -
है कि समरस हो चले हैं।।आज है रस...
अब सिसकती हैं व्यथायें
अंक भर तन्हाइयों के
अश्क बह बह सूखते हैं
ओट में रुसवाईयों के
कौन दे आलम्ब जब
सम्बन्ध परवश हो चले हैं।।आज है रस...
आज रोना भी कठिन है
मौन रहना ही उचित है
मृदुल स्मितमुख रहो अब
लाख मनमानस व्यथित है
शब्द शर से बेध देंगे
मित्र तरकश हो चले हैं।।आज है रस....
सुरेशसाहनी, कानपुर
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