बहुत बड़ा गुण भूल गए हैं।

हम अपनापन भूल गए हैं।।


बारिश, कागज़ सब हासिल है

हम ही बचपन भूल गए हैं।।


रोजी रोटी के चक्कर में

हम घर आँगन भूल गए हैं।।


लढ़िया बग्घी इक्का टमटम

कितने साधन भूल गए हैं।।


भूल हुयी जो प्यार कर लिया

अपना तनमन भूल गए हैं।।

 

जबसे देखा उन आँखों में

तबसे दर्पण भूल गए हैं।।


दुनियादारी में क्या उलझे

प्रभु का सुमिरन भूल गए हैं।।


सुरेशसाहनी, कानपुर

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