नफ़रत सिखाने के इतने इदारे।।

सीखें मुहब्बत कहाँ से बिचारे।।

ज़माना है आँधी या तूफान कोई

कहाँ बच सकेंगे ये छोटे शिकारे।।

ये लाज़ो-हया सब हैं माज़ी की बातें

निगाहों में होते थे पहले इशारे।।

ज़माना मुनाफागरी पे फिदा है

मुहब्बत के धंधे में खाली ख़सारे।।

हमें भी डूबा ले मुहब्बत में अपनी

बहुत रह लिए हम किनारे किनारे।।

तेरे साथ के चार दिन ही बहुत है

न कर और लम्बी उमर की दुआ रे।।

सुरेशसाहनी कानपुर

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