कविता तब प्रस्फुटित हुई थी 

जब निषाद ने बाण चलाकर

क्रौंच युगल के प्राण हरे थे

जो प्रणयाकुल  मैथुनरत थे

ऐसा विद्वद्जन कहते हैं

किसी वियोगी की  कविता को

 पहली कविता कहने वालों

पहले पढ़ लो उस प्रसंग को

फिर कवि के बारे में सोचो

कवि से पहले वह ऋषि भी है

उस को काहे का वियोग था

जिसने जीता हो अनंग को

ऐसे परम् तपस्वी ने जब

घटना से आक्रोशित होकर

उस निषाद को श्राप दिया था

तब कविता प्रस्फुटित हुई थी

तब से लेकर युगों युगों तक

जाने कितने युग गुजरे पर

कविता बंधक की बंधक थी

 आराधन में  स्तुतियों में 

अधोवस्त्र में कंचुकियों में

कविता तब आज़ाद हुई जब

भर्तहरी ने चार्वाक ने

नीति वचन के श्लोक बनाये

कविता तब आज़ाद हुई जब

दरबारी भट गायन छूटा

जब झूटी प्रशस्तियां छूटी

जब कबीर ने अपनी धुन में 

छेड़ी साखी शबद रमैनी

कविता तब आज़ाद हुई जब

एक निराले कवि ने आकर

गुल को कैपिटलिस्ट कह दिया

अब भी कविता तल पर आकर

जब गाता है कोई दिनकर

सिंहासन खाली करने को

जनता उद्यत हो जाती है

यह कविता है आह नहीं है.....

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