दिलों की जुबानी ठहरने लगी है।

हमारी कहानी ठहरने लगी है।।

किधर लेके जायेगी हमको सियासत

ग़ज़ल की रवानी ठहरने लगी है।।

उधर हौसले झूठ के बढ़ रहे हैं

इधर हक़बयानी ठहरने लगी है।।

मंत्री के साले की ससुराल है ये

तभी राजधानी ठहरने लगी है।।

वतन चल रहा था कभी जिसके दम पे

 वही नौजवानी ठहरने लगी है।।

सुरेश साहनी , कानपुर

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